३३ ॥ श्री अग्रदास जी ॥
चौपाई:-
जीव मात्र से द्वैस न राखै। सो सिय राम नाम रस चाखै।१।
दीन भाव निज उर में लावै। सिया राम सन्मुख छवि छावै।२।
तौन उपासक ठीक है भाई। वाकी समुझौ बनी बनाई।३।
सियाराम निशि वासर ध्यावै। अन्त त्यागि तन गर्भ न आवै।४।
दोहा:-
अग्रदास कह धन्य सो, जाहि दियो गुरु ज्ञान।
सो तन लीन्हो सुफल कै, छूटा दुःख महान।१।