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३४ ॥ श्री युगुल दास जी ॥


चौपाई:-

चोरी चुगली पर तिय निनदा। त्यागौ मिलैं सच्चिदानन्दा।१।

या से जीव भयो अति गन्दा। बझिगो कठिन दुःख के फन्दा।२।

सतगुरु करि लै नाम क रन्दा। ध्यान धुनि लै नूर अनन्दा।३।

कहैं जुगुल बनि जा हरि बन्दा। हर दम सन्मुख आनन्दकन्दा।४।