३६ ॥ श्री नूर खां जी ॥
चौपाई:-
क्षुदा तृषा जब आनि सतावै। तब बल बुध्दि सान लटि जावै।१।
निद्रा घेरि लेय जव आई। दे सोवाइ मानै नहिं भाई।२।
मन में बिसै वासना जागै। लोक लाज तन मन ते भागै।३।
सतगुरु करिकै इनको त्यागै। तब हरि नाम में मन मति लागै।४।
दोहा:-
कहै नूर खां भजन बिन, मानुष तन भा झूठ।
अन्त नर्क मे बास हो, लीन ठगन निज मूठ।१।