३७ ॥ श्री गंजेशाह जी ॥
पद:-
लखौ छवि कैसी ठाढ़े राजकुमार।
राम भरथ औ लखन शत्रुहन श्याम पीत उजियार।
कानन कुण्डल मुकुट शीश पर केशरि तिलक लिलार।
बाँये काँधेन धनुष पड़े हैं चम चमात हर वार।
सर तूणीर भरे पीठिन पर बाँधे खूब संभार।५।
निज निज नाम सरन धनुसन में अंकृत हैं सब वार।
भूषन बसन कहाँ तक वरनौं मैं मति मन्द गंवार।
देखत बनै कहै को मुख से अनुपम अजब सिंगार।
सतगुरु करै जपै अजपा जप सो पावै सुखसार।
ध्यान धुनी परकाश दशालय सन्मुख सब सरकार।१०।
सुर मुनि सब नित पास में आवैं तन मन ते करैं प्यार।
अन्त में हरि पुर चलि कै बैठो गंजे कह सरदार।१२।