४९ ॥ श्री शातिर जी ॥
पद:-
न आना है न जाना है, जिसे मिलिगा ठिकाना है।
लिया जिन नाम बाना है, वही मानो सयाना है।
नूर लय धुनि व ध्याना है, रूप सन्मुख सुहाना है।
प्रेम तन मन में साना है, बना हरदम मस्ताना है।
देव मुनि को हंसाना है, लिपट उर में लगाना है।५।
चक्र षट भेद जाना है, कमल सातों खिलाना है।
नागिनी को जगाना है, घूम सब लोक आना है।
विहंग मारग से धाना है, लिखा विधि का मिटाना है।
सबी में वह समाना है, न कोइ अपना विराना है।
मिला सतगुरु महाना है, नेम औ टेम ठाना है।१०।
चारों हूँ तन को छाना है, तत्व पांचों को जाना है।
नहीं अब कछु लिखाना है, कहैं शातिर चुपाना है।१२।