५७ ॥ श्री चेताना माई जी ॥
पद:-
कोई सतगुरु से मिलो ह्वै दीन सदा तन ना रहि है।
यह संसार ओस का मोती पौन चलै तस गिरि जैहै।
बिन हरि भजै नर्क जम डारै नाना विधि के दुःख पैहैं।
या से चेतो शब्द गहौ अब देखो कैसा सुख ह्वै हैं।
धुनि परकाश ध्यान लै करतल रूप सामने छवि छै हैं।५।
अनहद सुनो अमी रस चाखौ तिरवेनी सब मल ध्वै हैं।
चक्र कमल सुर मुनि सब दरसैं नागिनि बहु सुख उमड़ै हैं।
कहत चेताना छोड़ि अन्त तन वहुरि जगत में नहिं ऐहैं।८।