५८ ॥ श्री आनन्दा माई जी ॥
पद:-
हमै सतगुरु सबद दै दीन हमार कोइ का करिहै।
पांचो चोर अजा चुप ह्वै गई शान्ति भये गुण तीन। हमार कोइ०॥
कर्म शुभाशुभ जरे अगिनि में तन मन प्रेम में लीन। हमार कोइ०॥
धुनि औ ध्यान प्रकाश दशा लय जियतै करतल कीन। हमार कोइ०॥
सुर मुनि आय के दरशन दें नित हरि जस कहत नवीन। हमार कोइ०।५।
राधे माधौ हर दम सन्मुख जिनके सब आधीन। हमार कोइ०॥
कहै अनन्दा भजन बिना दुख जैसे जल बिन मीन। हमार कोइ०॥
सातौं कमल चक्र षट जाना कुण्डलिनी परवीन। हमार कोइ०।८।