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६१ ॥ श्री आनन्द जी ॥


पद:-

दया निधि श्याम औ राधे प्रेम औतार जग जाना।

करै तन मन लगा सुमिरन देंय फल ताहि मन माना।

मुनासिब है यही सबको किया जो कौल लो बाना।

ध्यान धुनि नूर लय होवै जियति भव पार हो जाना।

युगुल जोड़ी रहै सन्मुख लखौ हर वक्त मुसक्याना।५।

देव मुनि आय दें दरशन सुनावैं क्या मधुर गाना।

तान अनहद कि मन मोहै अमी चखि होहु मस्ताना।

नागिनी मातु जगि जावै लोक सब घूमि लखि आना।

चक्र षट होंयगे सोधन पदुम सातों खिले पाना।

फौज असुरन कि सब हारी भूलिगा उनका टर्राना।१०।

छोड़ि तन निज वतन जावै सिखा जिन नाम तर्राना।

कहैं आनन्द मैं हूँ कायथ जाति मेरी है अस्थाना।१२।