७२ ॥ श्री परवन दास जी ॥
चौपाई:-
दानी वीर संत औ दुरजन। जग में जन्मत हैं चारों जन।१।
कुलटा पतिव्रता औ दानी। अबला साधु रूप सुखखानी।२।
दोहा:-
दानी वीर औ पतिव्रता जावैं हरि के धाम।
सन्त होहि साकेत चलि अचल करैं विश्राम।१।
दुर्जन कुलटा नर्क में भोगैं नर्क महान।
परवन कह सत्यार्थ हम दीन बताय प्रमान।२।