७७ ॥ श्री निशुँभ जी ॥ चौपाई:- मोको मारि उमा सुखदाई। श्री हरि धाम दीन बैठाई।१। कहैं निशुंभ वहां सुख भारी। बरनत बनै न काह उचारी।२।