७९ ॥ श्री माया पुरी जी ॥
पद:-
शब्द पै सूरति अपनी तागो।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानो तन मन प्रेम से लागो।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय पाय जियति जग जागो।
हर दम राम सिया छवि निरखो सत मारग यह पागो।
काम क्रोध मद लोभ मोह को पकड़ि के उलटा टांगो।५।
द्वैत भाव आपै मिटि जावै आप को जब तुम त्यागो।
आय दीनता गोद खेलावै सांति क पहिनो बागो।
माया पुरी कहैं तन छूटै चट साकेत को भागो।८।