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८० ॥ श्री लखन पुरी जी ॥


पद:-

सतगुरु करि नर तन फल पावो।

अजपा जाप जपौ निशि वासर नेक न जीह हिलावो।

घट में माल रहत यह जारी ख्याल करो बनि जावो।

ध्यान धुनी परकाश होय लै सुख मन चलि हरखावो।

राम सिया की झांकी सन्मुख हर दम लखि मुसक्यावो।५।

सुर मुनि नित सत संग में आवैं हरि जस सुनो सुनावो।

नागिनि जाग जाय जंह सुन्दरि सब लोकन लखि आवो।

षट चक्कर वेधन ह्वै जावैं सातौं कमल खिलावौ।

अनहद नाद सुनति बनि आवै मुख से काह बतावो।

जियतै इच्छा सब गत होवै शुभ औ अशुभ जरावो।१०।

भीतर बाहर सम ह्वै जावै नाम निसान घुमावो।

शान्ति दीनता प्रेम मिलै जब तब हरि दास कहावो।

बाँटो राम नाम दीनन को जाति भेद मति लावो।

सुधरै जीव दुक्ख भव छूटै पास में वास यतावो।

तन तजि कै साकेत विराजौ जग से नात हतावो।

लक्षिमन पुरी कहैं सुमिरन बिन चौरासी चकरावो।१६।


दोहा:-

सूरति शब्द में जाय लगि कार्य्य होय सब सिध्दि।

लखन पुरी कहै नाम में अकथ अलेख है वृध्दि।१।