१०१ ॥ श्री वफाती शाह जी ॥
पद:-
ब्यान पढ़ सुनि के छोड़ो यारों मुरशिद के जाकर कदमो पै पर लो।
सिफ़त तुम्हारी यहाँ वहाँ हो रियाज़ कर खुद वचस्म कर लो।
लखौ कन्हैया अदा धरे क्या फिदा रहौ गर जियत में मर लो।
परकाश लै ध्यान धुनि हो हासिल सूरति शबद पर संभारि धर लो।
न होगि आमद कभी जहां में सखुन हमारा यह मानि सर लो।
असर मोहब्बत तन मन जुरादे वफ़ाती कहता अतौल ज़र लो।६।