१०० ॥ श्री चन्द्रिका प्रसाद जी ॥
पद:-
त्यागि संसार से मोहा। करो सतगुरु मिलै टोहा॥
लगा जिसने लिया जोहा। प्रेम तन मन में है पोहा॥
ध्यान धुनि नूर लै खोहा। चखै अमृत भरा कोहा॥
रूप सन्मुख सदा सोहा। मिटै असुरन क सब रोहा॥
जिसकी सत्ता में सब पोहा। उसे कलि मानता लोहा॥
सुनो रँकार है दोहा। छुटै आवागमन द्रोहा।६।
चौपाई:-
रासि क नाम यही है भाई। शिव लोमश फण पति बतलाई।१।
त्रगुणातीत महा सुख कारी। हर दम रहत है घट में जारी।२।
तन मन प्रेम से सुरति संभारी। ख्याल करो तब खुलै किंवारी।३।
कहैं चन्द्रिका सुनो निरन्तर। ऐसा और न कोई मन्तर।४।
दोहा:-
नर तन मिला अमोल है, समय मिला अनमोल।
कहैं चन्द्रिका लेव भजि, राम नाम अनमोल।१।