११० ॥ श्री परभू दयाल जी ॥
पद:-
नशीली श्याम की आंखै देखि तन मन मेरा माता।
बिना मुरशिद किये हर दम कोइ दीदार नहिं पाता।
अधर पर धरि हरी मुरली मंद ही मंद मुसक्याता।
सदा भक्तों के बस में है प्रेम ही पीता औ खाता।
नाम पर ख्याल तन मन प्रेम से जब तक नहीं लाता।५।
इसी से तो जुदा हरि से कपट उनको नहीं भाता।
ध्यान धुनि नूर लै पावै सुफ़ल तब हो गरभ बाता।
अन्त तन तजि चलै हरि पुर जगत में मारि कै लाता।