१२३ ॥ श्री लाला शिवचरन लाल जी ॥
पद:-
रमा सब में विलग सब से बड़ा आनंद दाता है।
प्रेम तन मन से जो करता उसी के दस्त आता है।
खेलता हर समय संघ में अजब कौतुक दिखाता है।
खान औ पान साथै में करै सोता जगाता है।
करै असनान जब मोहन मलै तन औ मलाता है।५।
लड़ै कुस्ती गिरै पहिले फेरि उठि कै गिराता है।
दौड़ में काटता चक्कर कभी हँसि बैठि जाता है।
कभी संग मार मुक्कों की करै भगता भगाता है।
कभी कपड़े उठा पहिने कभी चुपके पिन्हाता है।
कभी नूपुर बजा नाचै कभी मुरली सुनाता है।१०।
कभी संघै नचा करके फेरि गाना सिखाता है।
करो मुरशिद लखौ जियतै समै अनमोल जाता है।१२।