१२२ ॥ श्री लाला गुरशरन लाल जी ॥
पद:-
फिदा हम उस पै हैं भाई जो नंद का सुत कहाता है।
अधर पर धरि हरी मुरली मधुर स्वर से सुनाता है।
बजा नूपुर झुकै झूमै नज़ाकत क्या दिखाता है।
सखा सखियों को हँसि हँसि के झपटि उर में लगाता है।
लाड़िली के दस्त से दस्त गहि सँघ में नचाता है।५।
निरखते बन पड़ै यारों कहा मुख से न जाता है।
करै मुरशिद वही जानै सामने रूप छाता है।
ध्यान धुनि नूर लै जानै अंत हरि धाम पाता है।७।