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१२८ ॥ श्री लाला शिवदान बहादुर जी ॥


पद:-

हरि मोहिं चोर राति दिन पीटत।

धर्म की पूँजी जमा करो जहँ लखि कै फौरन झीटत।

सुमिरन पाठ कीर्तन पूजन सुनि कै सब मिलि खीझत।

उनके कहै में अगर चलैं हम तौ फिर खुश हो रीझत।

सतगुरु देहु मिलाय दया निधि दिन दिन आयू छीजत।

ध्यान धुनी परकाश दशा लै देवै तन मन सींचत।६।