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१४५ ॥ श्री लाला बिहारी लाल जी ॥


पद:-

हरि मोहिं ठगन बनायो पीना।१।

मन तो उनके कहे में लाग्यो तन बल ह्वै गयो हीना।

काह अकेल करैं हम स्वामी सब धन पकरि के छीना।

दुष्टन मारि देहु मोहिं मन को सब प्रभु तव आधीना।

सूरति के सँग ताहि लगाय के सुनौ नाम धुनि झीना।५।

ध्यान प्रकाश समाधि मिलै जहं होय करम गति खीना।

हर दम आप को निरखौं सन्मुख सदा रहौं लवलीना।

सतगुरु देहु मिलाय दया निधि सुफ़ल होय जग जीना।८।


दोहा:-

मै मति मन्द मलीन हूँ, अधम उधारन आप।

अब विलम्ब मति कीजिये, आपै माई बाप।१।

सतगुरु आपु को जानि के सब कहुँ पूजे जात।

जिनकी कृपा से भव अगम, गोखुर सम ह्वै जात।२।

अग्नी शीतल होत है, अस्त्र जात गोठिलाय।

सदा अभेद अखेद हैं, कहैं बिहारी गाय।३।