१४४ ॥ श्री मुरतजा हुसेन जी ॥
दोहा:-
चेला होय तो ठीक हो, नाहीं तो बेकार।
वासे तो चैला भला, जा से हो भण्डार।१।
जीव मात्र में हरि रमें, नाम जपै ले जान।
तब काहे जन्मै मरै, चौरासी की खानि।२।
पद:-
सतगुरु से मार्ग जानि भजन हरि का करो हो।
भव ताप जाय छूटि, काहे जन्मौ मरौ हो।
सूरति के संग मन को लै शब्द धरौ हो।
धुनि ध्यान नूर लै मिलै, तब जियत तरौ हो।
सन्मुख में सीता राम हों, मुद मंगल भरौ हो।
उपदेश दे के जीवन का सब दुःख हरौ हो।६।