१५१ ॥ श्री बुल्ले शाह जी ॥
शेर:-
ज़िवा करते हैं जीव तन से निकल जाते हैं।
मुर्दा खा खा के हाय पाप क्या कमाते हैं।१।
अन्त दोज़ख में जाय दुःख नित उठाते हैं।
बुल्ले कहते हैं आह आह धुनि मचाते हैं।२।
शेर:-
लिक्खा मुकद्दर का मिटै मानो कहा रव नाम लो।
मुरशिद से चाभी जानकर सूरति शबद पथ थाम लो।१।
तगमा मिलै जब नाम का परकाश लय धुनि ध्यान लो।
बुल्लै कहैं सन्मुख लखौ रव जान सब को जान लो।२।