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१५२ ॥ श्री लियाकत खां जी ॥


शेर:-

सदा घनश्याम राधे की अदा पै मैं फिदा रहता।

करै मुरशिद लखै वह जन हर समय सामने रहता।१।

मधुर मुसक्यान खुम चितवन अजब सिंगार सो लहता।

अधर पर बाँसुरी प्यारी धरे सुर मुनि जिसे चहता।२।

मिलै धुनि ध्यान लय रोशन जियत नर तन क फल गहता।

देव मुनि स्तुती करते मान अपमान सम सहता।३।

सदा निर्वैर औ निर्भय एक रस वह नहीं बहता।

लियाकत खां कहैं सुमिरन करौ देखौ मैं सच कहता।४।