१५८ ॥ श्री लाला राधिका चरन जी ॥
पद:-
हरी हरी कहा करो हरी हरी सुना करो
हरी हरी पढ़ा करो हरी हरी गुना करो।
हरी सुमिरि चखा करो हरी हरी लखा करो
हरी के संग भखा करो हरी हरी लिखा करो।
हरी को कहि परा करो हरी को कहि उठा करो
हरी को कहि चला करो हरी को कहि हँसा करो।
हरी ही को सगा करो हरी के बहु सखा करो
हरी से मति दगा करो हरी के उर लसा करो।५।
दोहा:-
हरी में तन मन जो रंगै, प्रेमी तौन कहाय।
कहैं राधिका चरन सो, बहुरि जक्त नहिं आय।१।