१६९ ॥ श्री नव्वाब अली जी ॥
पद:-
सिया राघो की झाँकी बड़ी बाँकी।
सतगुरु करि सुमिरन विधि लीजै सन्मुख तब जावैं टांकी।
छवि श्रृंगार छटा को वरनै फणपति शारद लखि थाकी।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सुनिये सदा चलत चाकी।
तन मन प्रेम लगाय भजन करि गर्भ कि रिन चुकवो बाकी।
कहैं नवाब अली चित चेतो नाहीं तो यम ले हैं फांकी।६।