१७० ॥ श्री नवाब हुसेन जी ॥
पद:-
प्रिय माधो कि झाँकी बड़ी बाँकी।
मुरशिद करि जप की विधि जानो तब सन्मुख जावैं टांकी।
देखत बनै करै को वरनन सुर मुनि शरन रहत जाकी।
मुरली अधर मनोहर राजै शोभा लखि गति मति थाकी।
लय धुनि ध्यान प्रकाश होय जब समुझो बड़ी भाग्य वाकी।
नवाब हुसेन कहैं नर तन लहि के गर्भ कि अदा करौ बाकी।६।