१७५ ॥ श्री पण्डित गार्गी दीन जी ॥
पद:-
हरि मोहिं करि किरपा अपनाओ।
मैं मति मन्द गँवार अधम अति केहि विधि तव गुण गावो।
मन दिवान भूतन संग जोड़े कौन भांति समुझावो।
कबहूँ निकट न आवत मेरे निशि दिन मैं अकुलावो।
आखिर का परिणाम बुरा है नर्क में दुख बहु पावो।
या से विनय सुनो जग स्वामी बार बार बलि जावो।६।