१७६ ॥ श्री पण्डित गार्गी चरण जी ॥
पद:-
हरि तुम सब देवन के देवा।
सुर मुनि सब तुम्हरो गुण गावत पावत पूरन भेवा।
नेक कृपा में मगन रहत हैं चाखत अनुपम मेवा।
उत्पति पालन हाथ आपके आपै भव निधि खेवा।
भक्तन के वश रहत सदा प्रभु करत करावत सेवा।
काटत कठिन कुअंक दया निधि जो विधि भाल में छेवा।६।