१७८ ॥ श्री बन्दगी शाह जी ॥
पद:-
चारि दिन की जगत में यह है जिन्दगी
वन्दगी से डरोगे अगर यार तुम।
हाथ लागै न कुछ जाव दोज़ख पकड़
आह नारे भरौगे वहाँ यार तुम।
काम गर मान रव के करोगे यहाँ
भिश्त देवैंगे मौजें करौ यार तुम।
बनते खादिम हो लाजिम नहीं यह तुम्हैं
कैसे तारो तरौगे गुनो यार तुम।
करके मुरशिद लगा लौ भजौ लो जियत
फिर न नीचे गिरौगे सुनो यार तुम।
गम व शादी को सम मान करके रहौ
तब तो सार्टिफिकट को लहौ यार तुम।६।