१८२ ॥ श्री प्यारी जान जी ॥
जारी........
गन्ध औ गन्ध के गन्ध की शक्ति है।
रस औ रस के रस की शक्ति है।
भूख औ भूख के भूख की शक्ति है।
प्यास औ प्यास के प्यास की शक्ति है।६०।
माया औ माया के माया की शक्ति है।
छाया औ छाया के छाया की शक्ति है।
उष्ण औ उष्ण के उष्ण की शक्ति है।
शीत औ शीत के शीत की शक्ति है।
उत्पति औ उत्पति के उत्पति की शक्ति है।
पालन औ पालन के पालन की शक्ति है।
संहार औ संहार के संहार की शक्ति है।
अमी औ अमी के अमी की शक्ति है।
ज़हर औ ज़हर के ज़हर की शक्ति है।
लहर औ लहर के लहर की शक्ति है।७०।
राशि औ राशि के राशि की शक्ति है।
ग्रह औ ग्रह के ग्रह की शक्ति है।
कर्म औ कर्म के कर्म की शक्ति है।
मर्म औ मर्म के मर्म की शक्ति है।
भर्म औ भर्म के भर्म की शक्ति है।
वर्म औ वर्म के वर्म की शक्ति है।
काम औ काम के काम की शक्ति है।
रती औ रती के रती की शक्ति है।
कार्य्य औ कार्य्य के कार्य्य की शक्ति है।
कारन औ कारन के कारन की शक्ति है।८०।
कर्त्ता औ कर्त्ता के कर्त्ता की शक्ति है।
भर्त्ता औ भर्त्ता के भर्त्ता की शक्ति है।
शौक औ शौक के शौक की शक्ति है।
शर्म औ शर्म के शर्म की शक्ति है।
गुप्त औ गुप्त के गुप्त की शक्ति है।
प्रगट औ प्रगट के प्रगट की शक्ति है।
मन औ मन के मन की शक्ति है।
आत्म औ आत्म के आत्म की शक्ति है।
अस्त्र औ अस्त्र के अस्त्र की शक्ति है।
वस्त्र औ वस्त्र के वस्त्र की शक्ति है।९०।
भूषण औ भूषण के भूषण की शक्ति है।
छवि औ छवि के छवि की शक्ति है।
छटा औ छटा के छटा की शक्ति है।
श्रृंगार औ श्रृंगार के श्रृंगार की शक्ति है।
अग्नि औ अग्नि के अग्नि की शक्ति है।
वायु औ वायु के वायु की शक्ति है।
वारि औ वारि के वारि की शक्ति है।
मही औ मही के मही की शक्ति है।
गगन औ गगन के गगन की शक्ति है।
तुख्म औ तुख्म के तुख्म की शक्ति है।१००।
मन्त्र औ मन्त्र के मन्त्र की शक्ति है।
यन्त्र औ यन्त्र के यन्त्र की शक्ति है।
तन्त्र औ तन्त्र के तन्त्र की शक्ति है।
आदि औ आदि के आदि की शक्ति है।
मध्य औ मध्य के मध्य की शक्ति है।
अन्त औ अन्त के अन्त की शक्ति है।
वेद औ वेद के वेद की शक्ति है।
शास्त्र औ शास्त्र के शास्त्र की शक्ति है।
सुख औ सुख के सुख की शक्ति है।
मुनिन औ मुनिन के मुनिन की शक्ति है।११०।
मास औ मास के मास की शक्ति है।
वर्ष औ वर्ष के वर्ष की शक्ति है।
जारी........