१८६ ॥ श्री कुब्जा जी का कीर्तन ॥
पद:-
हे मुरारि हे मोहन श्याम हे माधव गोविन्द गुण ग्राम।
हे गोपाल हे शोभा धाम हे मुकुन्द जगदीश प्रणाम।
हे सुख सागर हे ज्ञानागर हे उत्पति कर पालन हार।
हे सब मँत्र यँत्र के सार हे हरि सब के प्राण अधार।
हे माखन दधि दूध लुटैया हे वृज में नित रहस रचैया।५।
हे ग्वालन के मित्र कन्हैया हे वन वन गौवन के चरैया।
हे यशुदा सुत नन्द के लाल हे वृज जीवन करत निहाल।
हे देवकी सुत वसुदेव लाल हे मुरली धर रूप विशाल।
हे गिरधारी श्री वृजराज हे बन वारी सब सिरताज।
हे राधेवर राखौ लाज हे तनुधारी भक्तन काज।१०।
हे अधमन के पाप नशावन हे महि भार भंजि सुख छावन।
हे सन्मुख नित दर्श देखावन हे प्रेमिन के तन मन भावन।१२।