साईट में खोजें

१८५ ॥ श्री सेवरी जी का कीर्तन ॥


दोहा:-

श्री गुरू महाराज के वचन मानि जो लेय।

ताको राम औ लखन चलि, ठौरै दर्शन देंय।१।

मुक्ति भक्ति जियतै मिलै, सेवरी कहैं सुनाय।

अन्त समय हरि धाम को, सिंहासन चढ़ि जाय।२।


पद:-

नमो राम लछिमन नमो राम लछिमन नमो राम लछिमन

नमो राम लछिमन।

श्री राम लछिमन श्री राम लछिमन श्री राम लछिमन श्री राम लछिमन।

जय जय राम लछिमन जै जै राम लछिमन जै जै राम लछिमन

जय जय राम लछिमन।

हरे राम लछिमन हरे राम लछिमन हरे राम लछिमन हरे राम लछिमन।

प्यारे राम लछिमन प्यारे राम लछिमन प्यारे राम लछिमन

प्यारे राम लछिमन।५।

मेरे राम लछिमन मेरे राम लछिमन मेरे राम लछिमन

मेरे राम लछिमन।

भजो राम लछिमन भजो राम लछिमन भजो राम लछिमन

भजो राम लछिमन।

लखो राम लछिमन लखो राम लछिमन लखो राम लछिमन

लखो राम लछिमन।

कहो राम लछिमन सुक्ख मिले तन मन सुनो बैन सब जन

काहे फिरो अन मन।

जाव बनि टन मन भागै दूरि यम गन सेवरी कहैं पास धन

प्रेम करि जाव सन।१०।


दोहा:-

प्रेम सर्व सुख खानि है, श्री गुरु वाक्य न त्याग।

शान्ति दीनता को गहौ, समय पै जावै जाग।१।

जैसे पावक राख में, छिपी न देवै आँच।

जब वाको परदा हटै, तब सब मानै साँच।२।

अटल वाक्य श्री गुरू के, लीजै उर में धारि।

सेवरी कह निर्भय रहौ, मानो वचन हमारि।३।