१९० ॥ श्री शची माता जी का कीर्तन ॥
पद:-
राम कृष्ण विष्णु भजौ गल्पौं गल्पौं छोड़ो रे।
काम क्रोध लोभ मोह अहंकार गोड़ौ रे।
दिव्य रूप जियत लखौ भर्म भांड़ा फोड़ौ रे।
लय प्रकाश ध्यान धुनी मिलै नाता जोड़ौ रे।
सुर मुनि सब दर्श दें जक्त ख्याल तोड़ौ रे।
परतीति करि सतगुरु वचन गहि नेक मुखमति मोड़ौ रे।६।
दोहा:-
निशि वासर बिरथा गयो, हरि सों किहेव न हेत।
अन्त समय पछितावोगे, नर्क में चलिहैं बेंत॥