२१७ ॥ श्री सुमिरन शाह जी ॥
पद:-
जे सुमिरन में हों लालायित वही दुर्लभ सुलभ करते।
वही लय नूर धुनि औ ध्यान से तन मन को खुब भरते।
वही सुर मुनि से बतलावैं सुनैं अनहद जियत बर लें।
वही सिय राम राधे श्याम को निज सामने कर लें।
वही सब लोक लखि आवैं त्यागि तन फेरि चलि घर लें।
वही समझो कि अधिकारी जे सतगुरु करके यह ज़र ले।६।