२२० ॥ श्री हुण्डी माई जी ॥
पद:-
श्री गंगा श्री गंगा श्री गंगा कि क्या धारा।
नहावै जो नहावै जो नहावै जो हो निस्तारा।
विमल जल है विमल जल है विमल जल है लखो सारा।
जिसे शंकर जिसे शंकर जिसे शंकर ने शिर धारा।
लिया हरि ने लिया हरि ने लिया हरि ने जब अवतारा।५।
रूप बावन रूप बावन रूप बावन क अति प्यारा।
छला बलि को छला बलि को छला बलि को न बलि हारा।
किया तन को किया तन को किया तन को तब विस्तारा।
लोक तीनो लोक तीनो लोक तीनो नापि डारा।
तभी विधि ने तभी विधि ने तभी विधि ने पग पाखारा।१०।
कमण्डल में कमण्डल में कमण्डल में उसे धारा।
जिसे पाते जिसे पाते जिसे पाते थे हर बारा।१२।