२३३ ॥ श्री नगेसरी माई बढ़इनि जी ॥
रेखता:-
कदम धर दस्त नीरज सम चांद चौदस के सा मुख है।१।
जिन्हैं कहते हैं मन मोहन लखौ कैसा अजब सुख है।२।
देव मुनि सब के जीवन धन बिना देखे दुखै दुख है।३।
सदा भक्तों के बश रहते लखा करते कि क्या रुख है।४।
रेखता:-
कदम धर दस्त नीरज सम चांद चौदस के सा मुख है।१।
जिन्हैं कहते हैं मन मोहन लखौ कैसा अजब सुख है।२।
देव मुनि सब के जीवन धन बिना देखे दुखै दुख है।३।
सदा भक्तों के बश रहते लखा करते कि क्या रुख है।४।