२४२ ॥ श्री जुगधी माई कहारिन जी ॥
पद:-
सखियों चलो अमीरस चाखैं गगन से टपकत बारह मास।
सतगुरु करो गहौ अब मारग छोड़ौ जग की आस।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन हो खास।
अनहद घट में बाजत हरदम सुनि मन होय हुलास।
अलबेली जोड़ी क्या बाँकी निरखत हो दुख नाश।५।
मुरली अधर धरे संग में प्रिय सखा सखी बहु पास।
सन्मुख रहै न अन्तर होवै पूरण सुख की रास।
सुर मुनि आय के दर्शन देवैं अन्त अचल पुर वास।८।