२४३ ॥ श्री गुर्गी माई गोड़िनि जी ॥
पद:-
सखियों तुम्हरा ठेकाना ससुरारि, नैहरवा एक दिन त्यागै क परी।
सतगुरु करि खुब लेहु निहारि, नहीं तो पिया कैसे वरी।
लीजै शान्ति दीनता धारि, गहौ एक नाम लरी।
लय ध्यान प्रकाश में जाय, कर्म्म दोउ जारै क परी।
तब कोई न सकै निहारि, जाय हो पास खरी।
सोइ कुलवन्तिन हुशियार, नारि सुकुमारि हरी।६।