२४६ ॥ श्री हिरिया माई ठठेरिन जी ॥
पद:-
तौलत घाटि बरक्कत भागी।
यहाँ वहाँ नहिं मिलै ठेकाना नर्क में चलिहैं सांगी।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानौ काहे बनै हौ बागी।
यह तन दुस्तर फेरि न पैहौ जाहि बनायो दागी।
ध्यान प्रकाश नाम धुनि जानो लय मे जाओ पागी।५।
सन्मुख कमला विष्णु को निरखौ प्रगटै ब्रह्म कि आगी।
कर्म शुभाशुभ का हत होवै तब होओ अनुरागी।
हिरिया कहैं अन्त हरि के पुर पहुँचि जाव तन त्यागी।८।