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२५३ ॥ श्री मेड़ाना माई ललाइन जी ॥


पद:-

किन किन पिंजड़ों में पले फिरे सैं शारद शेष न गाय सकैं।

कहती है मेड़ाना तब हम फिरकिस बुध्दि से तुम्हैं बताय सकैं।

सतगुरु करिकै अब नाम जपौ वै भर्म औ शर्म मिटाय सकैं।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सिय राम सामने छाय सकैं।

अनहद बाजन की हद्द नहीं धुनि सुनि तन मन हर्षाय सकैं।५।

सुर मुनि आवैं हरि यश गावैं औ अर्थ भि कछु समुझाय सकैं।

जे मानि वचन लेवैं मेरा गुनि सूरति शब्द लगाय सकैं।

ते जियतै में निर्भय ह्वै कर तन त्यागि अचल पुर जाय सकैं।८।