२५४ ॥ श्री गनेशा माई भाटिन जी ॥
पद:-
प्रतिष्ठा सूकरी विष्टा देव मुनि जब बताया है।
वाह औ स्वाह में पड़कर उसे फिर क्यों भुलाया है।
बुजुर्गों की तजी बानी मसी मुख में लगाया है।
पढ़ा क्या है सुना क्या है गुना क्या है थुकाया है।
समय औ तन मिला अनमोल हा विरथा गँवाया है।५।
अन्त होने के पहिले ही नर्क में घर बनाया है।
करै सतगुरु भजै हरि को वही सच्चा कहाया है।
वही परकाश धुनि औ ध्यान लय का सुख उठाया है।
वही सुर मुनि के संग खेलैं वही विधि गति मिटाया है।
वही सब लोक लखि आवै वही साधू कहाया है ।१०।
वही निर्भय रहै हर दम रूप सन्मुख में छाया है।
गनेशा कह वही भव से दूसरों को छोड़ाया है।१२।
शेर:-
मान अपमान का ख्याल करना बुरा।
इस से आखिर चलैगा गले पर छुरा।१।
इसको समझो है आमिष औ सीसा सुरा।
गनेशा कहैं गर फँसा सो ढुरा।२।