२६६ ॥ श्री झवुई माई भुँइहारिन जी ॥
पद:-
बिना सतगुरु के सुमिरन विधि क मिलना गैर मुमकिन है ।
ध्यान धुनि नूर लय में जाय पड़ना गैर मुमकिन है।
रूप का हर समय सन्मुख में लखना गैर मुमकिन है।
देव मुनि संग हरि यश का भि सुनना गैर मुमकिन है।
साज अनहद कि धुनि प्यारी भि सुनना गैर मुमकिन है ।५।
प्रेम बिन तन में मन हर दम ठहरना गैर मुमकिन है।
अन्त तन तजि अचल पुर वास करना गैर मुमकिन है।७।