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२६८ ॥ श्री गुजिया माई लोनिन जी ॥


पद:-

भजन बिन होइ हौ मरि के मुसरी।

सतगुरु करौ जपौ निशि बासर तब सुधरै तन गुदरी।

सन्मुख राधा माधौ सोहैं निरखि निरखि छवि हँसुरि।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय पाय बैठु घर घुसरी।

सुर मुनि के संग बैठक होवै कहु सुनु हरि को यशुरी।५।

अनहद बाजा घट में बाजै सब से प्यारी बँसुरी।

गुजिया कहै मिटै बिधि की गति तन मन प्रेम से लसुरी।

नाहीं तो फिरि अन्त नर्क में यमन के हाथ में फँसुरी।८।