२८८ ॥ श्री वोधा राम काँदू जी ॥
पद:-
कुण्डलिनी जग जाय जब, षट चक्कर सुध जाँय।
कमल सातहूँ जांय खिलि, हर दम महक उड़ाय।
सुखमन होवै स्वांस जब, तब सब कारज होय।
चेतो मुरशिद को करो, काहे रहे हो सोय।
सूरति शब्द कि जाप का, भेद जाव जब जान।
तब मन की तस्वी फिरै, खुलैं चश्म औ कान।६।