२८७ ॥ श्री औतार वर वार जी ॥
पद:-
तजो जग जाल तन मन से पास मुरशिद से लो चल के।
ध्यान धुनि नूर लय जानो मिटा दो द्वैत को मल के।
सुनो अनहद चखौ अमृत गगन से बहि रहा गल के।
देव मुनि आय दें दर्शन मिलावै दस्त क्या हल के।
सदा प्रिय श्याम कि झाँकी रहै सन्मुख न मन छल के।
अन्त तन तजि चलो हरि पुर मौन बैठो मगन ढल के।६।