२९६ ॥ श्री परागी कुचवँधिया जी ॥
पद:-
जान विधि सतगुरु से जप की मन क माला फेर लो।
ध्यान धुनि परकाश लय हो रूप सन्मुख हेर लो।
देव मुनि दर्शैं सुनो अनहद असुर गहि पेर लो।
जंग जियतै में फ़तेह करि कोट अपना घेर लो।
फेरि डर किसका रहै तप धन क करि खुब ढेर लो।
कहता परागी शब्द पै सूरति को अपनी गेर लो।६।