२९५ ॥ श्री अला बकस सीदी जी ॥
पद:-
जिन जिन योनिन में आये तुम तहँ रक्षा दीन दयाल करी।
अब तुम चोरन के संग में पड़ि क्यों फूले घूमत छोड़ि हरी।
बाला पन खेल में बीति गयो तरुणाई तिया के संग टरी।
वृद्धा पन में गर चेत करौ सब माफ़ होय पाओ डिगरी।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानौ जियतै ह्वै जाओ यार बरी।५।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सन्मुख प्रिय श्याम कि जोड़ी खड़ी।
सुर मुनि दर्शैं हरि यश वर्षै तन मन में धुनी अनहद कि भरी।
शुभ अशुभ जरैं विधि लेख टरै लखि दूरिहि ते यम काल डरी।८।