३०२ ॥ श्री रसूल बख्श जी ॥
पद:-
पिता माता को चाही निज औलाद को दै कर सिक्षा सुधारैं
हो नर तन सुफ़ल।
वरना वै अन्त में जाय दोज़ख पड़ैं आह नारे भरैं
पावैं पल भर न कल।
वै तो पशुओं कि गणना में भी हैं नहीं शौकिया रत किया
खोया निज वीर्य्य बल।
उनकि सोहबत न करना कभी भाइयों वै हैं अधरम के संघी
बड़े बंडखल।
उनको सिक्षा अगर धर्म की दीजिये तो वै कहते हैं
हम से नहीं होगि हल।५।
मास मदिरा बिना लुकमा उठता नहीं रोम रग जितने
तन में गया पाप ढल।
कितनी चीज़ें जरात में ग़िजा के लिये सो न खाते
उड़ाते हैं क्या मूत्र मल।
बख्शा अनमोल तन ईश ने किस लिये उसको कर डाला खुद
हाय मोरी क नल।८।