३०३ ॥ श्री रहीम बख्श नाल बन्द जी ॥
पद:-
विवाह लड़का औ लड़की के में जे जन भांजी मारत हैं।
उन्हैं फिरि अन्त में यमदूत गहि करके पछारत हैं।
जाय दरबार में लेकर करौ पेशी सुधारत हैं।
पीटते लै चलैं नरकै हौज गन्दे में डारत हैं।
तरे से ऊपर जब आवैं हाय रे हा पुकारत हैं।५।
पकरि फिरि दूत कर पग ले ऐंठ तन खून गारत हैं।
झोंक जलती हुई भट्ठी में दें सब तन को जारत हैं।
फेरि तन ज्यों का त्यों बाहर लखैं भाले प्रहारत हैं।
कराहों में खौलता तेल कसि तामें लेटारत हैं।
उबलि जलि जाय फिरि देखैं खड़ा तुरतै बिठारत हैं।१०।
दण्ड बहु विधि के भोगवावैं दया उर में न धारत हैं।
विनय मेरी गुनो सब जन करो सतगुरु वै तारत हैं।१२।