३०७ ॥ श्री अब्दुल अली रवावी जी ॥
पद:-
जिनके सीकर छीट से सुर मुनि सुखी रहते बने।
उनका सुमिरन कीजिये बसु जाम निगमागम भने।
ध्यान धुनि परकाश लय हो रूप सन्मुख आ तने।
प्रेम करि सुर मुनि मिलैं सतसंग हरि यश का छने।
अनहद सुनो अमृत चखो हो शान्ति चोर न फिर हने।
सतगुरु करौ मारग गहौ बनि जाव जियतै टनमने।६।