३०८ ॥ श्री हिम्मत जान जी ॥
पद:-
कोटिन में कोई भक्त सूरति शब्द का मारग गहै।
धुनि ध्यान लय परकाश पावै रूप सन्मुख में रहै।
सुर मुनि मिलैं अनहद सुनै तन से विलग नहिं मन बहै।
नागिन जगै सब चक्र बेधैं सातौं कमल खुशबू लहै।
निर्वैर निर्भय एक रस अच्छे बुरे सब को चहै।५।
बेखता कीन्हे व्यंग वचनों को सदा सुख से सहै।
सतगुरु बिना यह अगम जानो कहने को कोई कहै।
तन त्यागि जावै अचलपुर जग में न फिर कबहूँ ढहै।८।